सियासी दांव-पेंच के बीच नीतीश का ट्रम्प कार्ड

7 नंवबर को बिहार में आखरी चरण में 15 जिलों की 78 सीटों पर वोटिंग होनी है. लेकिन उससे पहले पूर्णिया में चुनावी सभा में सीएम नीतीश कुमार के एक बयान से सियासी हलचल तेज हो गयी है.

एक तरफ जहां सुशासन बाबू के इस बयान पर विपक्षियों ने कहा कि नतीजों से पहले ही नीतीश कुमार ने सरेंडर कर दिया है और अपनी हार स्वीकार कर ली है. वहीं दूसरी तरफ नीतीश के बयान को उनका आखरी चुनावी दांव माना जा रहा है जो उन्होंने जनता के सामने फेंका है. 15 साल से बिहार की सत्ता को संभालने वाले नीतीश कुमार के सामने इस बार के चुनाव में चुनौतियां कम नहीं है.

पिछले विधानसभा चुनाव में चाचा भतीजे बनकर लड़े नीतीश और तेजस्वी इस बार अलग होकर जंग लड़ रहे है. चुनावी सभाओं में लगातार तेजस्वी पहले से ही नीतीश को हारा और थका बता रहे है. इसके साथ ही तेजस्वी मुख्यमंत्री बनते ही 10 लाख युवाओं को नौकरी देने का वादा भी कर रहे है. बेरोजगारी पर लगातार राहुल गांधी भी नीतीश पर हमला बोल रहे है.

नीतीश के विरोध में सिर्फ विपक्ष ने मोर्चा नहीं खोला ही, बल्कि उनके पुराने साथी रहे एलजेपी नेता चिराग पासवान भी नीतीश कुमार पर हमला करने और उन्हें नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे है. इतना ही नहीं चुनावी रैलियों में कई बार नीतीश का जमकर विरोध किया जा रहा है.
रालोसपा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने भी नीतीश कुमार के आखिरी चुनाव वाले बयान पर कहा कि उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें आराम करने की जरुरत है.


नीतीश कुमार ने भले ही इस चुनाव को अपना आखरी चुनाव बताया हो लेकिन ये बात चाहे पक्ष हो या विपक्ष सभी को भली भाँति मालूम है कि नीतिश राजनीति के कच्चे खिलाड़ी नहीं है. राजनीति का हर दांव-पेंच अच्छे से समझते है, शाह मात के खेल में कौन सा ट्रम्प कार्ड कब फेंकना है ये बखूबी जानते है नीतीश.

जेपी आंदोलन से निकले नीतीश कुमार एक ऐसे नेता है जिन्होंने बिहार राजनीति में अपनी एक अलग छाप छोड़ी है. आखरी चरण में 15 जिलों की जिन 78 सीटों पर चुनाव होने है वो सीटें नीतीश कुमार की हार-जीत में अहम भूमिका निभाने वाली है. 2015 के विधानसभा के चुनावों में महागठबंधन में रहते हुए JDU ने इन सीटों से 23 सीटें जीती थी जबकि RJD ने 20 वहीं कांग्रेस ने 11 तो बीजेपी ने 20 सीटें हासिल की थीं।

भले ही अब नीतीश कुमार बिहार विधानसभा चुनाव को अपना आखरी चुनाव बता रहे हो भले ही नीतीश कुमार ये कहते नजर आ रहे है कि अंत भला तो सब भला. लेकिन नीतीश का ये दांव सीधे इन सीटों से जुड़ता नजर आ रहा है. 78 सीटों पर अति पिछड़ा, मुसलमान और यादवों की संख्या सबसे ज्यादा है। माना जाए तो अति पिछड़ा वर्ग नीतीश के कोर वोटर हैं और नीतीश ने उन्हें फिर से साधने की कोशिश की है। लेकिन इन सभी के बीच सवाल ये है कि

  1. नीतीश के इस दांव से नाराज वोटर मानेंगे?
  2. बेरोजगार युवाओं को साधने में नीतीश कामयाब होंगे?
  3. नीतीश की चाणक्य नीति सत्ता की कुर्सी दिला पाएगी?