कैसे मनाते है आंवला नवमी का पर्व, जाने क्या कुछ है ख़ास

आंवला नवमी 23 नवंबर को है। कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी, आंवला नवमी या युगतिथि कहते हैं। यह तिथि युगों-युगों से अक्षय फलदायक मानी गई है।

  • भगवान ने कंस का वध किया था.
  • वृक्ष के नीचे भोजन बनाना और करना विशेष शुभ माना जाता है.
  • कुष्मांड का दान करना भी अत्यधिक शुभ माना जाता है.
  • माता लक्ष्मी ने की सर्वप्रथम पूजा.

भगवान शिव और विष्णु का प्रतीक है आंवला वृक्ष, पूजा से दूर होती है दरिद्रता।

औषधीय गुणों से भरपूर होता है आंवला, अक्षय नवमी पर क्यों करते हैं इसकी पूजा?

क्या है अक्षय नवमी का पर्व ?

कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवला नवमी कहा जाता है. माना जाता है कि इसी दिन से द्वापर युग का आरम्भ हुआ था।
इसी दिन के अगले दिन बाद भगवान ने कंस का वध किया था।
इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाना और करना विशेष शुभ माना जाता है।
इस दिन कुष्मांड का दान करना भी अत्यधिक शुभ माना जाता है।

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माता लक्ष्मी ने की सर्वप्रथम पूजा

आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा और इसके वृक्ष के नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरुआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं। धरती पर आकर भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की उनकी इच्छा हुई। लक्ष्मीजी ने सोचा कि एक नारायण और शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ध्यान आया कि श्री हरि की प्रिय तुलसी और शिव स्वरुप बेल के गुण एक साथ आंवले के वृक्ष में होते है। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर माँ लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन कराया। इसके बाद स्वयं ने भोजन किया।

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आंवला नवमी पूजा

आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान है। आंवले की जड़ में दूध चढ़ाकर रोली, अक्षत, पुष्प, गंध आदि से पवित्र वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा करें। इसके बाद आंवले के वृक्ष की सात परिक्रमा करने के बाद दीप प्रज्वलित करें। उसके उपरांत कथा का श्रवण या वाचन करें। अक्षय नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आंवला ज़रूर खाना चाहिए।