वाराणसी में देव दीपावली

वाराणसी में देव दीपावली पर लाखों दीयों से जगमगाएंगे काशी के घाट, जानिए क्यों मनाते हैं ये महापर्व

धर्मनगरी वाराणसी की देव दीपावली के दिन ऐसा लगता है मानों साक्षात भगवान खुद दीयों को रौशन कर रहे है. हर साल की तरह इस बार भी देव दीपावली के लिए भव्य तैयारी की जा रही है. इस बार देव दीपावली के इस महापर्व पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शिरकत करेंगे

  • लाखों दीयों से जगमगाएंगे काशी के घाट
  • देव दीपावली में शिरकत करेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
  • धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है देव दीपावली
  • पंचगंगा घाट से देव दीपावली का नाता सदियों पुराना है
धर्मनगरी वाराणसी की देव दीपावली

वाराणसी में काशी के देव उत्सव ‘देव दीपावाली’ का इंतजार हर कोई पूरे साल करता है. देवताओं की इस दीपावली का नजारा देखने लोग दूर-दूर से आते हैं. अब वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान बना चुका यह पर्व आम और खास सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी भी इस महा उत्सव का दीदार करने 30 नवंबर को वाराणसी पहुंच रहे हैं. इन सबके बीच यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर इस देव दीपावली की शुरुआत कहां से हुई और कैसे घाटों पर यह दीये जलने लगे.

देवताओं ने शुरू की थी ‘देव दीपावली’

देवताओं द्वारा शुरू की गई देव दीपावली को मानव जन तक पहुंचाने का प्रयास महारानी अहिल्याबाई होलकर ने किया. ये प्रयास पंचगंगा घाट से शुरू हुआ था. जो धीरे-धीरे समय के साथ साथ काशी के 84 घाटों तक पहुंच गया. महाराजा काशी नरेश विभूति नारायण सिंह और उनके सहयोगियों ने मिलकर 1985 से देव दीपावली परंपरा को आगे बढ़ाया. जिसके बाद 1991 में शुरू हुई गंगा सेवा निधि की गंगा आरती के बाद देव दीपावली ने वैश्विक स्वरूप ले लिया. अंतत: घाटों का यह महापर्व विश्व स्तर तक पहुंच गया

पंचगंगा घाट से देव दीपावली

पंचगंगा घाट से देव दीपावली का नाता सदियों पुराना है

वाराणसी के पंचगंगा घाट से इस देव दीपावली का सदियों पुराना नाता है. जानकार बताते हैं कि वाराणसी में देव दीपावली के शुरुआत वैसे तो पुराणों में भगवान शिव की कथा से जुड़ी है. लेकिन घाटों पर जलाए जाने वाले दीपक की कहानी पंचगंगा घाट से जुड़ी है. बताया जाता है कि 1785 ईसवी में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पंचगंगा घाट पर ही पत्थर से बनाए गए हजारा स्तंभ दीपक की लंबी शृंखला को जलाकर काशी में देव दीपावली उत्सव की शुरुआत की थी.

पंचगंगा घाट का इतिहास

पंचगंगा घाट का इतिहास

बनारस के पंचगंगा घाट का इतिहास भी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि कार्तिक के महीने में यहां पर आकाश दीप जलाए जाने की शुरुआत भी की गई थी. आज भी यहां सैकड़ों की संख्या में आकाशदीप लंबे-लंबे बांस पर लगी टोकरियो में जगमगाते हैं. इतना ही नहीं पंचगंगा घाट पर एक साथ पांच नदियों का समागम होता है. जिसमें गंगा, यमुना, सरस्वती, द्रुतपापा शामिल है. इसके अलावा पंचगंगा घाट वह पवित्र स्थान भी है जहां पर महान संत कबीर दास को सीढ़ियों पर स्वामी रामानंद जी से गुरुमंत्र मिला था. घाट की सीढ़ियों पर लेट कर अपने गुरू के आने का इंतजार कर रहे कबीर के ऊपर स्वामी रामानंद के पैर इसी घाट पर पड़े थे.

कार्तिक महीने में पंचगंगा घाट

कार्तिक महीने में पंचगंगा घाट पर करें स्नान

पुराणों में वर्णित है कि कार्तिक के पूरे महीने यदि पंचगंगा घाट पर स्नान किया जाए तो मोक्ष और पुण्य फल की प्राप्ति होती है. यदि पूरे महीने स्नान न कर पाए तो सिर्फ कार्तिक पूर्णिमा पर लगाई गई एक डुबकी ही पूरे कार्तिक का पुण्य देती है. यही वजह है कि आज भी इस पंचगंगा घाट का महत्व विशेष माना जाता है. इस घाट पर मौजूद सदियों पुराने हजारा दीपक स्तंभ को आज भी प्रज्ज्वलित कर काशी में देव दीपावली पर्व की शुरुआत की जाती है

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